"मानवता की वर्तमान स्थिति"
क्या हुआ है इस मानवता को,
जिसे पथिक बोलते थे पगड़ी सजा कर।
सब मिलकर ही उसका निर्माण हुआ था,
ख़ुदाई की मेहनत से उठा था धज्जियाँ वर्तनी भी आदमी था।।
पर समय बदल गया है और साथ लिए लिए हैं,
सिर्फ़ अपने ही विकारों से परिपूर्ण होकर।
सारे अधिकार बंधे, मोह और माया के फाँसों में,
आज ख़ुद को खो रहे हैं, अपनी मूर्खता के सागर में।।
दूर है सद्भावना का भाव, आपसी सम्मान की कीमत समझें,
स्वार्थ में डूबे भावनाओं की नौकरी में लिपटे आदमी हैं।
सच्चाई के सूरज की किरणें तो छूने नहीं दी जाती,
समझदारी और ईमानदारी को बेकाबू खड़े आज दुनिया के भीषण विकट समय में।।
आतंकवाद और हिंसा का भय दिल में बसा रहता है,
प्यार और सद्भावना का बीज इस मानवता के भीतर जलता है।
जिन्दगी ख़ूबसूरत हो सकती हैनयी आशा का उजाला जगाते हुए,
मानवता को सच्ची स्वतंत्रता और समृद्धि के संकल्प से भर दें जीने का अवसर देते हुए।।
चलो जगाते हैं इन दिलों में सद्भावना की ज्योति,
बांटते हैं प्यार और सम्मान का पूर्णता से उपहार।
हर किसी को स्वीकार करते हुए एक दूसरे की आदतों को,
साथी बनते हैं ख़ुशहाल और आदर्श समाज के निर्माण में।।
6 Comments
Bohot Sundar hai 👌
ReplyDeleteसुंदर 👌❤️
ReplyDelete👌👌👌👍👍👍
ReplyDeleteNice 👍
ReplyDeleteSunder 👌
ReplyDelete👌👍👍
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